Wednesday, November 24, 2010

श्री विष्णु सहस्त्रनाम !

ॐ गं गणपतये नम:


ॐ नमो नारायणाय नम:



सच्चिनंदरूपाय कृष्णायाक्लिष्टकारिणे | नमो वेदांतवेद्याय गुरवे बुद्धिसाक्षीणे ||



कृष्णद्वैपायनं व्यासं सर्वलोकहिते रतं | वेदाब्जभास्करं वन्दे शमादिनिलयं मुनिं ||



सहस्त्रमूर्ते: पुरुषोत्तमस्य सहस्त्रनेत्रानन पादबाहों: | सहस्त्रनाम्नां स्तवनं प्रशस्तं निरुच्यते जन्मजरादिशान्तये ||



वैशाम्पायनो जन्मेजयमुवाच-



'श्रुत्वा धर्माण अशेषेण पावनानी च सर्वषा: | युधिष्ठिर: शांतनवं पुन: एव अभ्यभाषत: || १



किं एकं दैवतं लोके किं व अपि एकं परायणं | स्तुवन्त: कं कं अर्चन्त: प्राप्न्यु: मानव: शुभम || २



को धर्म: सर्वधर्माणाम भवत: परमो मत: | किं जपं मुच्यते जंतु: जन्मसंसारबंधनात || ३



जगतप्रभुं देवदेवं अनन्तं पुरषोत्तमं | स्तुवन नाम सहस्त्रेण पुरुष: सततोत्थिता: ||४



तमेव च अर्चयन नित्यं भक्त्या पुरुषं अव्ययं | ध्यायन स्तुवन नमस्यन च यजमान: तमेव च || ५



अनादिनिधनं विष्णुं सर्वलोकमहेश्वरम | लोकाध्यक्षं स्तुवन नित्यं सर्वदु:खातिगो भवेत् || ६


ब्रह्मण्यं सर्व धर्मयज्ञं लोकानां कीर्तिवर्धनम | लोकनाथं महदभूतम सर्वभूतभवोदभवं || ७


एष मे सर्वधर्माणाम धर्मो अधिकतमो मत: | यद् भक्त्या पुण्डरीकाक्षं स्तवै: अर्चेत नर: सदा || ८



परमं यो महत तेज: परमं यो महत तप: | परमं यो महत ब्रह्म परमं य: परायणं || ९



पवित्रानां पवित्रं यो मंगलानां च मंगलं | दैवतं देवतानां च भूतानाम यो अव्यय: पिता || १०



यत: सर्वाणी भूतानि भवन्ति आदियुगागमे | यस्मिन च प्रलयं यान्ति पुनरेव युगक्षये || ११



तस्य लोकप्रधानस्य जगन्नाथस्य भूपते | विष्णो: नामसहस्त्रं मे शृणु पाप भायापहं || १२



यानी नामानि गौणानी विख्यातानी महात्मन: | ऋषिभि परिगीतानी तानि वक्ष्यामि भूतये || १३



ॐ १ विश्वं २ विष्णु:३ वषटकार: ४ भूतभव्यभवत्प्रभु:| ५ भूतकृत ६ भूतभृत ७ भाव: ८ भूतात्मा ९ भूतभावन:| १४



पूतात्मा परमात्मा च मुक्तानां परमा गति:| अव्यय: पुरुष: साक्षी क्षेत्रज्ञ अक्षर एव च|| १५



योगो योगविदां नेता प्रधान पुरुषेश्वर:| नारसिंहवपु: श्रीमान केशव:२४ पुरुषोत्तम:|| १६



सर्व: शर्व: शिव: स्थाणु: भूतादि: निधि: अव्यय: | सम्भव: भावन: भर्ता प्रभव: प्रभु: ईश्वर: || १७



स्वयंभू: शम्भू: आदित्य: पुष्कराक्ष: महास्वन:| अनादिनिधन: धाता विधाता ४५ धातुरुत्तम:|| १८



अप्रमेय: हृषिकेश: पद्मनाभ: अमरप्रभू:|| विश्वकर्मा मनु: त्वष्ठा स्थविष्ठ: ५४ स्थविर: ध्रुव:|| १९



अग्राह्य: शास्वत: कृष्ण: लोहिताक्ष: प्रतर्दन:| प्रभूत: त्रिककुब्धाम पवित्रं ६३ मंगलं परम || २०



ईशाण: प्राणदा: प्राण: ज्येष्ठ: श्रेष्ठ: प्रजापति:| हिरण्यगर्भ: भूगर्भ: माधव: ७३ मधुसूदन:|| २१



इश्वर: विक्रमी धन्वी मेधावी विक्रम: क्रम:| अनुत्तम: दुराधर्ष: कृतज्ञ: कृति: ८४ आत्मवान|| २२



सुरेश: शरणं शर्म विश्वरेता प्रजाभव:| अह: संवत्सर: व्याल: प्रत्यय: ९४ सर्वदर्शन:|| २३



अज: सर्वेश्वर: सिद्ध: सिद्धि: सर्वादि: १०० अच्युत:| वृषाकपि: अमेयात्मा सर्वयोगविनि:सृत:|| २४



वसु: वसुमना: सत्य: समात्मा सम्मित: सम: | अमोघ: पुण्डरीकाक्ष: वृषकर्मा वृषाकृति: || २५



रूद्र: बहुशिरा: बभ्रु: विश्वयोनी: शुचीश्रवा:| अमृत: शास्वतस्थाणु: वरारोह: १२२ महातप:|| २६



सर्वग: सर्ववित् भानु विष्वक्सेन जनार्दन:| वेद: वेदविद अव्यंग: वेदवित १३२ कवि:|| २७



लोकाध्यक्ष: सुराध्यक्ष: धर्माध्यक्ष: कृताकृत:| चतुरात्मा चतुर्व्यूह: चतुर्दृष्ट: १४० चतुर्भुज:||२८



भ्राजिष्णु: भोजनं भोक्ता सहिष्णु: जगदादिज:| अनघ: विजय: जेता विश्वयोनी: १५० पुनर्वसु:|| २९



उपेन्द्र: वामन: प्रांशु: अमोघ: शुचि: उर्जित:| अतीन्द्र: संग्रह: सर्ग: धृतात्मा नियम १६२ यम:|| ३०



वेद्य: वैद्य: सदायोगी वीरहा माधव: मधु:| अतीन्द्रिय: महामाय: महोत्साह: १७२ महाबल:|| ३१



महाबुद्धि: महावीर्य: महाशक्ति: महाद्युति:| अनिर्देश्यवपु: श्रीमान अमेयात्मा १८० महाद्रिध्रिक || ३२



महेश्वास: महीभर्ता श्रीनिवास: सतां गति:| अनिरुद्ध: सुरानन्द: गोविन्द: १८८ गोविंदाम पति:|| ३३



मरीचि: दमन: हंस: सुपर्ण: भुजगोत्तम:| हिरण्यनाभ: सुतपा: पद्मनाभ: १९७ प्रजापति:|| ३४


अमृत्यु: सर्वदृक २०० सिंह: सन्धाता संधिमान स्थिर:|| अज: दुर्मर्षण: शास्ता विश्रुतात्मा २०८ सुरारिहा|| ३५



गुरु: गुरुतम: धाम सत्य: सत्यपराक्रम:| निमिष: अनिमिष: स्त्रग्वी वाचस्पति २१७ उदारधी:|| ३६



अग्रणी: ग्रामणी: श्रीमान न्याय: नेता समीरण:| सहस्त्रमूर्धा विश्वात्मा सहस्त्राक्ष: २२७ सहस्त्रपात|| ३७



आवर्तन: निवृत्तात्मा संवृत: संप्रमर्दन:| अह: संवर्तक: वह्नी: अनिल: २३५ धरनीधर:|| ३८



सुप्रसाद: प्रसन्नात्मा विश्वध्रिग विश्वभुक विभु:| सतकर्ता सत्कृत: साधू: जह्नु: नारायण: २४६ नर:|| ३९



असंख्येय: अप्रमेयात्मा विशिष्ट: २५० शिष्टकृत शुचि:| सिद्धार्थ: सिद्धसंकल्प: सिद्धिदा: सिद्धिसाधन:|| ४०



वृषाहि वृषभ: विष्णु : वृषपर्वा वृषोदर:| वर्धन: वर्धमान: च विविक्त: २६४ श्रुतिसागर:|| ४१



सुभुज: दुर्धर: वाग्मी महेंद्र: वसुद: वसु:| नैकरूप: बृहदरूप: शिपिविष्ट: २७४ प्रकाशन:|| ४२



ओजस्तेजोधुतिधर: प्रकाशात्म: प्रतापन:| ऋद्ध: स्पष्ट: अक्षर: मन्त्रचंद्रांशु भास्करद्युति:|| ४३



अमृतांश.शुद्भव: भानु: शशबिन्दु: सुरेश्वर:| औषधं जगत: सेतु: २८९ सत्यधर्मपराक्रम:|| ४४



भूतभव्य.भवन्नाथ: पवन: पावन: अनल:| कामहा कामकृत कान्त: काम: कामप्रद: २९९ प्रभु:|| ४५



३०० युगादिकृत युगावर्त: नैकमाय: महाशन:| अदृश्य: व्यक्तरूप: च सहस्त्रजित ३०७ अनंतजित || ४६



इष्ट: अविशिष्ट: शिष्ठेष्ट: शिखंडी नहुष: वृष:| क्रोधहा क्रोधकृतकर्ता विश्वबाहू: ३१७ महीधर:|| ४७



अच्युत: प्रथित: प्राण: प्राणदा: वासवानुज:| अपां निधि: अधिष्ठानम अप्रमत्त: ३२६ प्रतिष्ठित:|| ४८



स्कन्द: स्कन्दधर: धुर्य: वरद: वायुवाहन: | वासुदेव: बृहत् भानु: आदिदेव: ३३५ पुरंदर: || ४९



अशोक: तारण: तार: शूर: शौरी: जनेश्वर: | अनुकूल: शतावर्त: पद्मि ३४५ पद्मनिभेक्षण: || ५०



पद्मनाभ: अरविन्दाक्ष: पद्मगर्भ: शरीरभृत | महाऋद्धि: ऋद्ध: वृद्धात्मा महाक्ष: ३५४ गरुडाध्वज: || ५१



अतुल: शरभ: भीम: समयज्ञ: हविर्हरी: | सर्वलक्षणलक्षणयो लक्ष्मीवान ३६२ समितिंजय: || ५२



विक्षर: रोहित: मार्ग: हेतु: दामोदर: सह: | महीधर: महाभाग: वेगवान ३७२ अमिताशन: || ५३



उद्भव: क्षोणभो: देव: श्रीगर्भ: परमेश्वर: | करणं कारणं कर्ता विकर्ता गहन: ३८३ गुह्य: || ५४



व्यवसाय: व्यवस्थान: संस्थान: स्थानद: ध्रुव: |परिद्धि: परमस्पष्ट: तुष्ट: पुष्ट: ३९३ शुभेक्षण: || ५५



राम: विराम: विरत: मार्ग: नेय: अनय: ४०० अनय: | वीर: शक्तिमतां-श्रेष्ठ: धर्म: धर्मविद्युत्तम:|| ५६



वैकुण्ठ: पुरुष: प्राण: प्राणद: प्रणव: पृथु: | हिरण्यगर्भ: शत्रुघ्न: व्याप्त: वायु: ४१५ अधोक्षज: || ५७



ऋतु: सुदर्शन: काल: परमेष्ठी परिग्रह: | उग्र: संवत्सर: दक्ष: विश्राम: ४२५ विश्वदक्षिण: || ५८



विस्तार: स्थावरस्थाणु: प्रमाणं बीजंव्ययं | अर्थ: अनर्थ: महाकोश: महाभोग: ४३४ महाधन: || ५९



अनिर्विण: स्थविष्ठ: अभू: धर्मयूप: महामख: | नक्षत्रनेमी: नक्षत्री क्षम: क्षाम: ४४४ समीहन: || ६०



यज्ञ: इज्य: महेज्य: च क्रतु: सत्रं सतांगति: | सर्वदर्शी विमुक्तात्मा सर्वज्ञ: ४५४ ज्ञानमुत्तमम || ६१



सुव्रत: सुमुख: सूक्ष्म: सुघोष: सुखद: सुह्यत | मनोहर: जितक्रोध: वीरबाहू: ४६४ विदारण: || ६२



स्वपन: स्ववश: व्यापी नैकात्मा नैक-कर्मकृत | वत्सर: वत्सल: वत्सी रत्नगर्भ: ४७४ धनेश्वर: || ६३



धर्मगुप धर्मकृत धर्मी सत असत क्षरम अक्षरम | अविज्ञाता सहस्त्रान्शु: विधाता ४८५ कृतलक्षण: || ६४



गभस्तिनेमी: सत्वस्थ: सिंह: भूतमहेश्वर: | आदिदेव: महादेव: देवेश: ४९३ देवभृदगुरु: || ६५



उत्तर: गोपति: गोप्ता: ज्ञानगम्य: पुरातन: | शरीरभूतभृत ५०० भोक्ता: कपीन्द्र: भूरीदक्षिण: || ६६



सोमप: अमृतप: सोम: पुरुजित पुरुसत्तम: | विनय: जय: सत्यसंध: दाशार्हा: ५१२ सात्वतां पति: || ६७



जीव: विनयितासाक्षी (असाक्षी) मुकुंद: अमितविक्रम: | अम्भोनिधि: अनंतात्मा महोदधिशय: ५२० अन्तक: || ६८



अज: महार्ह: स्वाभाव्य: जितामित्र: प्रमोदन: | आनंद: नंदन: नन्द: सत्यधर्म ५३० त्रिविक्रम: || ६९



महर्षि: कपिलाचार्य: कृतज्ञ: मेदिनिपति: | त्रिपद: त्रि दशाध्यक्ष: महाश्रृंग: ५३७ कृतांतकृत || ७०



महावारह: गोविन्द: सुषेण: कनाकांगदी | गुह्य: गभीर: गहन: गुप्त: ५४६ चक्रगदाधर: || ७१



वेधा: स्वांग: अजित: कृष्ण: दृढ: संकर्षणोच्युत: | वरुण: वारुण: वृक्ष: पुष्कराक्ष: ५५७ महामना: || ७२



भगवान भगहा आनंदी वनमाली हलायुध: | आदित्य: ज्योतिरादित्य: सहिष्णु: ५६६ गतिसत्तम: || ७३



सुधन्वा अखंडपरशु: दारुण: द्रविणप्रद: || दिव:स्पृक सर्वद्रिगव्यास: ५७३ वाचास्पतिरयोनिज:|| ७४



त्रिसामा सामग: साम निर्वाणम भेषजम भिषक | संन्यासकृत शम: शांत: निष्ठा: शान्ति: परायणम || ७५



शुभांग: शांतिद: स्त्रिष्ट: कुमुद: कुवलेषय: | गोहित: गोपति: गोप्ता वृषभाक्ष: ५९५ वृषप्रिय: || ७६



अनिर्वर्ती निवृत्तात्मा संक्षेप्ता क्षेमकृत ६०० शिव: | श्रीवत्सवक्ष: श्रीवास: श्रीपति: ६०४ श्रीमतां वर: || ७७



श्रीद: श्रीश: श्रीनिवास: श्रीनिधि: श्रीविभावन: | श्रीधर: श्रीकर: श्रेय: श्रीमान ६१४ लोकत्रयाश्रय: || ७८



स्वक्ष: स्वंग: शतानंद: नंदी: ज्योतिगणेश्वर: | विजितात्मा अविधेयात्मा सत्कीर्ति: ६२३ छिन्नसंशय: || ७९



उदीर्ण: सर्वतचक्षु: अनीष: शास्वतस्थिर: | भूषय: भूति: विशोक: ६३२ शोकनाशन: || ८०



अचिर्षमान अर्चित: कुम्भ: विशुद्धात्मा विशोधन: | अनिरुद्ध: अप्रतिरथ: प्रद्युम्न: ६४१ अमितविक्रम: || ८१



कालनेमिनिहा वीर: शौरी: शूरजनेश्वर: | त्रिलोकात्मा त्रिलोकेश: केशव: केशिहा ६५० हरी: || ८२



कामदेव: काम्पल: कामी कान्त: कृतागम: || अनिर्देश्यवपु: विष्णु: वीर: अनंत: ६६० धनञ्जय: || ८३



ब्रह्मणि: ब्रह्मकृत ब्रह्मा ब्रह्म ब्रह्मविवर्धन: | ब्रह्मवित ब्राह्मण : ब्रह्मी: ब्रह्मज्ञ: ६७० ब्रह्मणप्रिय: || ८४



महाक्रम: महाकर्मा महातेजा: महोरग: | महाकृतु: महायज्वा महायज्ञ: ६७८ महाहवि: || ८५



स्तव्य: स्तवप्रिय: स्तोत्रं स्तुति: स्तोता रणप्रिय: | पूर्ण: पूरयिता पुण्य: पुण्यकीर्ति: ६८९ अनामय: || ८६



मनोजव: तीर्थकर: वसुरेता: वसुप्रद:| वसुप्रदा: वासुदेव: वसु: वसुमना: ६९८ हवि: || ८७



सदगति: ७०० सतकृति: सत्ता सदभूति: सत्यपरायण: | शूरसेन: यदुश्रेष्ट: सन्निवास: सुयामुन: || ८८



भूतावास: वासुदेव: सर्वसुनिलया: अनल: | दर्पहा: दर्पद: दृप्त: दुरधर: अथ ७१६ अपराजित: || ८९



विश्वमूर्ति: महामूर्ति: दीप्तमूर्ती: अमूर्तीमान | अनेकमूर्ती: अव्यक्त: शतमूर्ती: ७२४ शतानन: || ९०



एक: नैक: सव: क: किम यत तत पद्मनुत्त्मम | लोकबन्धु: लोकनाथ: माधव: ७३६ भक्तवत्सल: || ९१



सुवर्णवर्ण: हेमांग: वरांग: चन्दनांगदी | वीरहा विषम: शून्य: घ्रिताशी अचल: ७४६ चल: || ९२



अमानी मानद: मान्य: लोकस्वामी त्रिलोकधृक | सुमेधा: मेधज: धन्य: सत्यमेधा: ७५६ धराधर: || ९३



तेजोवृष: द्युतिधर: सर्वशस्त्रभृतां वर: | प्रग्रह: निग्रह: व्यग्र: नैकश्रृंग: ७६४ गदाग्रज: || ९४



चतुर्मूर्ति: चतुर्बाहू: चतुर्व्यूह: चतुर्गति: | चतुरात्मा चतुर्भाव: चतुर्वेद.वित् ७७२ एकपात || ९५



समावर्त: अनिवृत्तात्मा दुर्जय: दुरतिक्रम: | दुर्लभ: दुर्गम: दुर्ग: दुरावास: ७८१ दुरारिहा || ९६



शुभांग: लोकसारंग: सुतन्तु: तंतुवर्धन: | इन्द्रकर्म: महाकर्म: कृतकर्मा ७८९ कृतागम: || ९७



उद्भव: सुन्दर: सुन्द: रत्ननाभ: सुलोचन: | अर्क: वाजसन: श्रृंगी जयंत: ७९९ सर्वविज्जयी || ९८



सुवर्णबिंदु अक्षोभ्य: सर्ववागीश्वरेश्वर: | महाहृद: महागर्त: महाभूत: महानिधि: || ९९



कुमुद: कुंदर: कुंद: पर्जन्य: पावन: अनिल: | अमृताश: अमृतवपु: सर्वज्ञ: ८१६ सर्वतोमुख: || १००



सुलभ: सुव्रत: सिद्ध: शत्रुजित शत्रुतापन: | न्यग्रोध: उदुम्बर: अश्व्थ: ८२५ चाणुरान्ध्रनिशूदन: || १०१



सहस्त्रार्ची: सप्तजिह्वा: सप्तैधा: सप्तवाहन: | अमूर्ति: अनघ: अचिन्त्य: भयकृत ८३४ भयनाशन: || १०२



अणु: बृहत्कृश: स्थूल: गुणभृत निर्गुण: महान | अधृत: स्वधृत: स्वास्य: प्रागवंश: ८४६ वंशवर्धन: || १०३



भारभृत कथित: योगी योगीश: सर्वकामद: | आश्रम: श्रमण: क्षाम: सुपर्ण: ८५६ वायुवाहन: || १०४



धनुर्धर: धनुर्वेद: दंड: दमयिता दम: | अपराजित: सर्वसह: नियंता अनियम: ८६६ अयम: || १०५



सत्त्ववान सात्त्विक: सत्य: सत्यधर्मपरायण: | अभिप्राय: प्रियाह्र प्रियकृत ८७५ प्रीतीवर्धन: || १०६



विहायसगति: ज्योति: सुरुचि: हुतभुक विभु: | रवि: विरोचन: सूर्य: सविता ८८५ रविलोचन: || १०७



अनंत: हुतभुक भोक्ता सुखद: नैकज: अग्रज: | अनिर्विण: सदामर्शी लोकाधिष्ठानम ८९५ अद्भुत: || १०८



सनात सनातनतम: कपिल: कपि: ९०० अप्यय: | स्वस्तिद: स्वस्तिकृत स्वस्ति स्वस्तिभुक ९०५ स्वस्तिदक्षिण: || १०९



अरौद्र: कुंडली चक्री विक्रमी उर्जितशासन: | शब्दातिग: शब्दसह: शिशिर: ९१४ शर्वरीकर: || ११०



अक्रूर: पेशल: दक्ष: दक्षिण: क्षमीणाम वर:| विद्युत्तम: वीतभय: ९२२ पुण्यश्रवणकीर्तन: || १११



उत्तारण: दुष्कृतहा पुण्य: दू:स्वप्ननाशन: | वीरहा रक्षण: संत: जीवन: ९३१ पर्यवस्थित: || ११२



अनन्तरूप: अनन्तश्री: जितमन्यु: भयापहा: | चतुराश्रा: गभीरात्मा विदिशा: व्यादिशा: ९४० दिशा: || ११३



अनादी: भूर्भुव: लक्ष्मी: सुवीर: रुचिरांगद: | जन्म: जन्मादी: भीम: ९४९ भीमपराक्रम: || ११४



९५० आधारनिलय: अधाता पुष्पहास: प्रजागर: | उध्वर्ग: सतपथाचार: प्राणदा: प्रणव: ९५८ पण: || ११५



प्रमाणं प्राणनिलय: प्राणभृत प्राणजीवन: | तत्त्वं तत्त्ववित् एकात्मा ९६६ जन्ममृत्युजरातिग: || ११६



भुर्वा: स्वस्तरू: तार: सविता प्रपितामह: | यज्ञ: यज्ञपति: यज्वा यज्ञांग: ९७५ यज्ञवाहन: || ११७



यज्ञभृत यज्ञकृत यज्ञी यज्ञभुक यज्ञसाधन: | यज्ञांतकृत यज्ञगुह्यं अन्नं ९८४ अन्नाद: एव च || ११८



आत्मयोनी: स्वयंजात: वैखान: सामगायन: | देवकीनंदन: स्त्रिष्ट: क्षितीश: ९९२ पापनाशन: || ११९



शंखभृत नंदकी चक्री शान्ग्र्दधन्वा गदाधर: | रथांगपाणि: अक्षोभ्य:१००० सर्वप्रहरणायुध: ||


सर्वप्रहरणायुध: ॐ नम: इति: || १२०



इतीदं कीर्तनीयस्य केशवस्य महात्मन:| नाम्नां सहस्त्रं दिव्यानाम अशेषेण प्रकीर्तितम || १२१



य इदम शृणुयात नित्यं य: च अपि परिकिर्तयेत | न अशुभं प्राप्नुयात किंचित स: अमुत्र इह च मानव: || १२२



वेदान्तग: ब्रह्मण: स्यात क्षत्रिय: विजयी भवेत् | वैश्य: धनसमृद्ध: स्यात शुद्र: सुखं अवाप्नुयात || १२३



धर्मार्थी प्राप्नुयात धर्मं अर्थार्थी च अर्थम् आप्नुयात | कामान अवाप्नुयात कामी प्रजार्थी च आप्नुयात प्रजाम || १२४



भक्तिमान य: सदा उत्थाय शुची: तदगतमानस: | सहस्त्रं वासुदेवस्य नाम्नाम एतत प्रकीर्तयेत | १२५



यश: प्राप्नोति विपुलं ज्ञातिप्राधान्यम एव च | अचलाम श्रियम आप्नोति श्रेय: प्राप्नोति अनुत्तमम || १२६



न भयं क्वचित आप्नोति वीर्यम तेज: च विन्दति | भवति अरोग: द्युतिमान बलरूप गुणान्वित: | १२७



रोगार्त: मुच्यते रोगात बद्ध: मुच्येत बन्धनात | भयान मुच्येत भीत: तु मुच्येत आपन्न आपदा: | १२८



दुर्गाणि अतितरति आशु पुरुष: पुरषोत्तमम | स्तुवन नामसहस्त्रेण नित्यं भक्तिसमन्वित: || १२९



वसुदेवाश्रयो मर्त्य: वासुदेवपरायण: | सर्वपापविशुद्धात्मा याति ब्रह्म सनातनम || १३०



न वासुदेवभक्तानाम अशुभम विद्यते क्वचित | जन्ममृत्यु जराव्याधि भयम न एव उपजायते || १३१



इमम स्तवम अधीयान: श्रृद्धाभक्तिसमन्वित: | युज्येत आत्मसुखक्षान्तिश्रीधृतिस्मृति कीर्तिभी: || १३२



न क्रोध: न च मात्सर्यम न ;लोभ: नाशुभा मति: | भवन्ति कृतपुण्यानाम भक्तानाम पुरोषोत्तमे || १३३



द्यौ: सचंद्रार्कनक्षत्रा ख़म दिश: भू: महोदधि: | वासुदेवस्य वीर्येण विधृतानि महात्मन: || १३४



ससुरासुरगर्धर्वं सयक्षोरगराक्षसम | जगत वशे वतर्ते इदम कृष्णस्य सचराचरम || १३५



इन्द्रियाणि मन: बुद्धि: सत्त्वम तेज: बलम धृति: | वासुदेवात्मकानि आहु: क्षेत्रम क्षेत्रज्ञ: एव च || १३६



सर्वागमानाम आचार: प्रथमम परिकल्पते | आचारप्रभवो धर्म: धर्मस्य प्रभु: अच्युत: || १३७



ऋषय: पितर: देवा: महाभूतानि धातव: | जंगमाजंगमम च इदम जगत नारायणो उद्भवं || १३८



योग: ज्ञानम् तथा सांख्यम विद्या: शिल्पादि कर्म च | वेदा: शास्त्राणि विज्ञानम एतत सर्वम जनार्दनात || १३९



एक: विष्णु: महदभूतम पृथगभूतानि अनेकश: | त्रीन लोकान व्याप्य भूतात्मा भुंगक्ते विश्वभुक अव्यव्य: || १४०



इमम स्तवम भगवत: विष्णो व्यासेन कीर्तितम | पठेत य: इच्छेत पुरुष: श्रेय: प्राप्तुम सुखानि च || १४१



विश्वेश्वरम अजम देवम जगत: प्रभवाप्ययम | भजन्ति ये पुष्कराक्षम न ते यान्ति पराभवम || १४२



सहस्त्रनामसम्बन्धिव्याख्या सर्वसुखावहा | श्रुतिस्मृतिन्यायमूला रचिता हरीपादयो: ||



इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य श्रीमतशंकरभगवत: कृतौ


विष्णुसहस्त्रनामस्तोत्रभाष्यं सम्पूर्णम ||


|| हरिओम तत्सत हरिओम तत्सत हरिओम तत्सत हरिओम तत्सत हरिओम तत्सत ||



13 comments:

  1. Bhaiya, font colour black hoga to padhne mein suvidha rahegi.

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  2. शांताकारम भुजगशयनम पद्यनाभम् सुरेशम् । विश्वाधारं गगन सदृसं मेघवर्णम् शुभांगम् । लक्ष्मीकांतम् कमलनयनम् योगीभर्ध्यानगम्यम । वंदे विष्णूम भवभयहरम सर्वलोकैय नाथम ॥

    हरिओम तत्सत ...बहुत सुन्दर प्रस्तुती सर जी ....अब्ब मुझे शिव सहस्त्र नाम का भी इंतजार !!!!!!!!!!!Regards...Nirmal Paneri

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  3. अद्भुत और सराहनीय है आपका यह प्रयास, विष्णुदेव की कृपा से ही संभव हुआ अनायास !बहुत बहुत साधुवाद!

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  4. आप सभी को धन्यवाद! अपर्णा दीदी font का कलर यही समझ में आया, विषय से मेल खाता है, लेकिन आप कहेंगी तो अवश्य change कर देंगे. मन में इच्छा थी कि अपने भाषा और संस्कृत कि धरोहर को fb व blog पर भी डालें, परिश्रम करना पड़ा क्योंकि संस्कृत को मूल रूप में लिखना पढना और बिना त्रुटियों के post करना थोडा मुश्किल होता है, अगर त्रुटियाँ हुई हों तो क्षमा.

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  5. अनुपमा जी, धन्यवाद, यह स्त्रोत्र आपके लिए शुभकर हो!
    अनीता जी, धन्यवाद, आपने सही कहा, यह उनकी वजह से ही संभव हुआ, जिनकी स्तुति में गाया गया है.

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  6. bhaiya , ab ye colour achchha lag raha hai. aapne bahut bada kaam kiya hai. sanskrit mein ise karna itna aasaan nahin tha.. bahut sundar hai ye .. hamaari sanskriti se roobaru karaata .. aaj ki pidhi ko samjhna adhik zaroori hai. anita ji ne sahi likha hai ..
    aashirwad bhaiya!

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  7. plz add music and full shloka with this page for download

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  8. @Balkrishna M: The verses has been put as it is in hindi for better reading. As for the music & full shloka is concerned, it is not possible now. Regards!

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  10. Re-edited today to put away few mistakes.
    To listen to beautiful rendition of Sri Vishnu Sahasranama - Full - Complete - 1000 Names of Vishnu - pleae go to:
    http://youtu.be/O8tJCTgkwQQhttp://youtu.be/O8tJCTgkwQQ

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  11. आपका हार्दिक धन्यवाद वर्षा जी ..

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